ग्रामीण मांग में सुधार एवं असंगठित क्षेत्र के कोरोना के झटकों से उबरने की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई का एक और दौर देखने को मिल सकता है। एचएसबीसी सिक्योरिटीज एंड कैपिटल मार्केट (इंडिया) के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि महंगाई के मुकाबले वेतन वृद्धि महामारी पूर्व स्तर के पार पहुंच गई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था से निकटता से जुड़े असंगठित क्षेत्र में भी सुधार दिख रहा है। इसके अलावा, सर्दियों के सीजन में बुवाई अच्छी रहने से आय के मोर्चे पर मदद मिलेगी।

अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी एवं आयुषी चौधरी ने बढ़ती ग्रामीण आय का महंगाई पर असर की ओर इशारा करते हुए कहा, खाद्य महंगाई पर पहले से ही दबाव बना हुआ है। खासकर अनाज और दूध की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं। आगे भी खाद्य कीमतों में वृद्धि का अनुमान है। उत्पादक भी मार्जिन बढ़ाने के लिए मजबूत मांग का इस्तेमाल करेंगे। इससे महंगाई का जोखिम बढ़ेगा। 2022 के अधिकांश महीनों में खुदरा महंगाई 6 फीसदी से ज्यादा रही है।

अच्छी फसल के बावजूद कीमतों के मोर्चे पर दबाव

अर्थशास्त्रियों ने कहा कि सर्दियों की फसल भले ही अच्छी हुई है, लेकिन ग्रामीण मांग ने कीमतों के मोर्चे पर दबाव बढ़ा दिया है। अगर आखिरी समय में मौसम की गड़बड़ी के कारण सर्दियों की फसल कमजोर होती है तो ग्रामीण आय और मुख्य महंगाई में गिरावट के बावजूद खाद्य महंगाई उच्च बनी रह सकती है।

रेपो दर में एक बार फिर हो सकती है 0.25 फीसदी वृद्धि

एचएसबीसी ने कहा कि 2023-24 में खुदरा महंगाई औसतन 5.4 फीसदी रह सकती है। ऐसे में आरबीआई रेपो दर में एक बार फिर 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है। इससे नीतिगत दर बढ़कर 6.75 फीसदी पर पहुंच जाएगी। हालांकि, अगले वित्त वर्ष के समाप्त होने से पहले आरबीआई रेपो दर में कटौती करेगा क्योंकि कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था में इस साल विकास दर 7 फीसदी से घटकर 5.5 फीसदी रह गई है।