नई दिल्ली । जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र के नीचे पाए जाने वाले कोरल रीफ (प्रवाल या मूंगे की चट्टान) तेजी से नष्ट होते जा रहे हैं। यह बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि धीरे-धीरे यह हमारे ईको सिस्टम (पारिस्थितिक तंत्र) को प्रभावित करने लगा है। ऐसे में समुद्री विज्ञानी व दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर दीनबंधु साहू और केआईआईटी भुवनेश्वर की सिविल इंजीनियरिंग संकाय में प्रोफेसर डॉ. संयुक्ता साहू ने मिलकर प्रयोगशाला में कृत्रिम कोरल रीफ डिजाइन किया है। हाल ही में ओडिशा के समुद्रतटीय क्षेत्र में इन कृत्रिम चट्टानों को समुद्र के भीतर स्थापित कर किया। साथ ही सामुद्रिक जंगल भी विकसित किया। समुद्री विज्ञान (मैरीन साइंस) के क्षेत्र में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के किसी तटीय क्षेत्र में यह पहली परियोजना है, जिसे प्रयोगशाला से बाहर लाकर जमीनी स्तर पर लागू किया गया है। यह दावा करते हुए प्रोफेसर साहू बताते इस परियोजना का महत्व तीन सवालों पर टिका हुआ है। पहला, कोरल रीफ नष्ट क्यों हो रहे हैं? दूसरा, इससे क्या असर पड़ रहा है? और तीसरा, कृत्रिम कोरल रीफ ईको सिस्टम को पुनर्जीवित करने में कैसे मदद करेगा? बिंदुवार इन सवालों का जवाब देते हुए वह बताते हैं कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां हमारे सामने आ रही है। इसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि से तटीय क्षेत्रों में समुद्र में लगातार चक्रवाती तूफान, समुद्र का अम्लीकरण हो रहा है। इसकी वजह से समुद्र का ईको सिस्टम नष्ट हो रहा है। इसमें कोरल रीफ का नष्ट या क्षरण होना है। कोरल रीफ के नष्ट होने से समुद्र की जैव विविधता को तो नुकसान पहुंच ही रहा है। कोरल रीफ के नष्ट होने से मछलियों व समुद्री जीवों को आवास नहीं मिल पा रहा है, जिससे उन्हें प्रजनन और अंडे देने के लिए सही स्थान नहीं मिल रहा है। इसकी वजह से मत्स्य उत्पादकता में तेजी से कमी आ रही है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक देश है। इससे समझा जा सकता है कि यह भारत की अर्थव्यवस्था व तटीय क्षेत्र के ग्रामीणों के आय का बड़ा स्रोत है। इसके मद्देजन ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएसवाई) लांच की गई थी, जिसमें सरकार का मुख्य लक्ष्य मत्स्य उत्पादन बढ़ाना है। साथ ही इसमें 50 लाख रोजगार पैदा करने का लक्ष्य है। प्रोफेसर साहू कहते हैं सरकार इस लक्ष्य को सिर्फ मछुआरों की संख्या बढ़ाकर या ज्यादा मात्रा में मछली पकड़कर पूरा नहीं किया जा सकता था। इसके लिए मछलियों की उत्पादकता बढ़ाना जरूरी है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही कृत्रिम कोरल रीफ बनाकर उसे समुद्र में स्थापित करने का निर्णय लिया। ताकि मत्स्य उत्पादकता में वृद्धि के साथ ही खराब समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की बहाली में भी मदद मिले और जैव विविधता में वृद्धि हो।