कुतुब मीनार के परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का ताजमहल की तर्ज पर संरक्षण किया जा रहा है। पहली बार कार्बनिंग तकनीक की मदद से इसके तोरणद्वार को ठीक किया जा रहा है। इसके खराब हुए पत्थर निकालकर उसके स्थान पर नए पत्थर लगाए जा रहे हैं।समय के साथ व भूकंप, रखरखाव के अभाव में मस्जिद में आई दरारों को भरा जा रहा है। इसमें लाइटिंग की व्यवस्था भी की जाएगी, जिससे यह दूर से ही लोगों को आकर्षित करेगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की ओर से इसका संरक्षण किया जा रहा है। एएसआई के अधिकारियों ने कहा है कि जिस तरह ताजमहल का संरक्षण कार्बनिंग के जरिये होता है, उसी शैली का इसमें प्रयोग किया जा रहा है।

जी- 20 शिखर सम्मेलन को देखते हुए इसका काम एक महीने के भीतर पूरा करने की उम्मीद है।राजस्थान के धौलपुर व आगरा के 35 कारीगर संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। इसमें मकराना के पत्थर का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें कार्बनिंग का कार्य कर रहे रफीक चौधरी और रहमान बताते हैं कि यह काफी मुश्किल तकनीक है। पहले पत्थर की कार्बनिंग की जाती है, उसके बाद दूसरे पत्थर पर उसे उकेरा जाता है। यह थोड़ा अधिक समय लेता है। कुतुब मीनार से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई दरवाजा और लौह स्तंभ को जोड़ने वाली जगह पर रैंप बनाए जा रहे हैं।

कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद जाने वाले रास्ते पर रैंप तैयार भी हो चुका है।कार्बनिंग तकनीक का मतलब कार्बन को इस्तेमाल कर उसे पत्थर पर लगाया जाता है और फिर उसको एक कागज में उतार लिया जाता है। इसके बाद उसे जस का तस जिस पत्थर में उकेरना है उस पर लगाया जाता है। जब वह पत्थर पर अपनी छाप छोड़ देता है, उसके बाद कारीगर पत्थर को आकार देते हैं। इससे पुराने पत्थर का आकार और डिजाइन एक समान ही रहते हैं।