हिंदू धर्म में चंद्रमा को देवता और ग्रह के रूप में पूजा जाता है। पुराणों में भी चंद्रमा के जन्म और चरित्र से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं। जिसमें कल्प भेद के अनुसार चंद्रमा को अत्रि का पुत्र बताया गया है।

जिनसे प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह किया था। इस संबंध में पद्म और मत्स्य पुराण की कथा में चंद्रमा के 300 वर्ष तक गर्भ में रहने की भी कथा है। आज हम आपको वही कहानी बता रहे हैं।

पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार मत्स्य और पद्म पुराण में चन्द्रमा का दिशाओं के गर्भ में 300 वर्ष तक रहने का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार पूर्वकाल में ब्रह्मा ने अपने पुत्र अत्रि को संसार की रचना करने की आज्ञा दी थी। इस पर महर्षि ने घोर तपस्या की। इसके प्रभाव से परमपिता परमात्मा महर्षि के मन और नेत्रों में उपस्थित हो गए। उस समय भगवान शिव ने माता पार्वती सहित अत्रि के मन और नेत्रों को भी अपना अध्य्यम बना लिया। जिसे देखकर चंद्रमा शिव के माथे पर चंद्रमा के रूप में प्रकट हो गया। उस समय महर्षि अत्रि के नेत्रों का जलमय प्रकाश नीचे की ओर चला गया। जिससे सारा संसार प्रकाश से भर गया। दिशा ने उस प्रकाश को स्त्री के रूप में अपने गर्भ में धारण कर लिया।

इसके बाद वह 300 साल तक उनकी कोख बनकर रहे। जब दिशा उसे सहन करने में असमर्थ हो गई, तो उसने उसे त्याग दिया, जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने उसका गर्भ उठाया और उसे एक युवा पुरुष में बदल दिया। वे उसे अपने लोगों के पास ले गए। उस पुरुष को देखकर ब्रह्मर्षि ने उसे अपना स्वामी बनाने की बात कही।

 इसके बाद ब्रह्मलोक में देवताओं, गंधर्वों और वैद्यों ने सोमदैवत्व नामक वैदिक मंत्रों से चंद्रमा की पूजा की। इससे चंद्रमा की चमक बढ़ गई। तब उस तेजस्वी समूह से दिव्य औषधियाँ पृथ्वी पर प्रकट हुईं। तभी से चंद्रमा को ओषाधीश कहा जाता है। इसके बाद दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं को चंद्रमा को पत्नी के रूप में दे दिया। चंद्रमा ने 10 लाख वर्षों तक भगवान विष्णु की तपस्या की। उससे प्रभावित होकर भगवान ने उसे इंद्र लोक पर विजय सहित कई वरदान दिए।