मुरैना और श्योपुर में ग्रीन एजी पायलट प्रोजेक्ट शुरू
भोपाल । कृषि क्षेत्र में उत्सर्जन कम करने और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने के मकसद से केंद्र सरकार ने ग्रीन एजी परियोजना की शुरु की है। यह परियोजना मिजोरम,राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तराखंड में लागू है। इस परियोजना के तहत पांच लैंडस्कैप में 1.8 मिलियन हेक्टेयर भूमि आएगी। मप्र में इस परियोजना के तहत चंबल संभाग दो जिलों मुरैना और श्योपुर को चुना गया है। योजना में चंबल संभाग में आने वाले मुरैना और श्योपुर जिले को करते हुए 98 हजार हेक्टेयर जमीन को कवर किया जाएगा जिसके दायरे में 116 गांव आएंगे।
केंद्र और राज्य सरकार योजना बनाकर इस क्षेत्र में वन, कृषि, सहकारिता, जल सहित इत्यादि का संरक्षण कर योजना को अमलीजामा पहनाएगा। देश के पांच प्रदेशों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुए इस अभियान में मप्र के मुरैना-श्योपुर को जुडवाने में केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का महत्वपूर्ण योगदान है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से इन दोनो जिलों की दशा और दिशा बदलना तय माना जा रहा है।
2026 तक जारी रहेगी योजना
ग्रीन-ऐग परियोजना को वैश्विक पर्यावरण सुविधा द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है, कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग इस परियोजना के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयन एजेंसी है। इस परियोजना को खाद्य एवं कृषि संगठन तथा केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से लागू किया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य, भारतीय कृषि में जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और स्थायी भूमि प्रबंधन उद्देश्यों तथा पद्धतियों को एकीकृत करना है। यह पायलट परियोजना सभी राज्यों में 31 मार्च, 2026 तक जारी रहेगी। इस परियोजना के अंतर्गत, राज्य के 35 गांवों को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा इसमें दो संरक्षित क्षेत्रों दृ डंपा बाघ अभयारण्य तथा थोरंगटलांग वन्यजीव अभयारण्य को भी सम्मिलित किया गया था अब चंबल के साथ कूनो नेशनल सेंचुरी भी इस प्रोजेक्ट में शामिल करने की कवायद चल रही है।
ग्रीन-एजी परियोजना के लक्ष्य
पांचो भू-प्रदेशों की कम से कम 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि में मिश्रित भूमि-उपयोग पद्धतियों से विभिन्न वैश्विक पर्यावरणीय लाभों को प्राप्त करना और कम से कम 104,070 हेक्टेयर कृषि-भूमि को सतत भूमि और जल प्रबंधन के अंतर्गत लाना भी रहेगा कृषि पद्धतियों के उपयोग से 49 मिलियन कार्बन डाइऑक्साइड का पृथकीकरण सुनिश्चित करना यानी पर्यावरण सुरक्षा करना शामिल है चुंकि इस प्रोजेक्ट में कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग को राष्ट्रीय क्रियान्वयन एजेंसी बनाया है और वन विभाग, जल संसाधन विभाग को भी इसमें शामिल किया गया है जिसके तहत इस वेल्ट में आने वाले गांव कृषि क्षेत्र, वन्य क्षेत्र एवं वन्यजीवों से जुडे क्षेत्र, जलीय क्षेत्र एवं जलीय जीवों से जुडे क्षेत्रों की चिंता और उनका सामूहिक संरक्षण भी किया जाएगा। योजना के तहत क्षेत्र की सभी नदियों और संभावित जल प्रवाहित वाले क्षेत्रों को जोडकर शत प्रतिशत चिंहित जमीन को सिंचाईयुक्त बनाया जाएगा। कृषि कामों की मूल्य वृद्धि के साथ जैविक पद्धति का भी ख्याल रखा जाएगा इनमें पर्यावरण संरक्षण को सर्वाधिक महत्ता दी जाएगी। सिंचाई के मामले में अभिशप्त विजयपुर क्षेत्र को इस प्रोजेक्ट से जोडऩे से वहां के किसानों के दिन फिरने तय हैं। ज्ञातव्य हो कि ड्राई क्षेत्र माने जाने वाले विजयपुर में सिंचाई के संसाधन नही होने की वजह से यहां पर किसान वर्षा आधारित फसल, ज्वार, बाजरा, तिल्ली, सरसों पर आश्रित है यहां पर कृषि व्यवसाय किसानों के लिए लाभ का नही बल्कि घाटे का सौदा ही साबित होती आ रही है। इस प्रोजेक्ट के तहत श्योपुर एवं मुरैना जिले की विजयपुर तथा सबलगढ विकासखण्ड में 98 हजार हेक्टयर भूमि को लक्षित कर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, लाइलीहुड, जैव विविधता, लैण्ड मैनेजमेंट, रिवाईन्स एरिया में सुधार सहित पर्यावरण की दिशा में कार्य किया जा रहा है।