रोजगार पैदा करने के लिए भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने पर जोर
नई दिल्ली। यह तो यूएई, आस्ट्रेलिया के साथ कारोबारी समझौता करने के साथ ही भारत ने यह संकेत दे दिया था कि सात-आठ वर्ष पहले तक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) से हिचकने की मानसिकता बदल चुकी है। लेकिन जून, 2024 के बाद सत्ता में आने वाली आगामी सरकार के लिए यह बहुत बड़ा अभियान बनने वाली है।
इस बात का संकेत उद्योग चैंबर सीआईआई के पिछले दो दिनों तक चले वार्षिक सम्मेलन में नीति आयोग, विदेश मंत्रालय और उद्योग व अंतरराष्ट्रीय कारोबार मंत्रालय के अधिकारियों ने दिए हैं। सीआईआई के इस सम्मेलन में चले विभिन्न सत्रों में हुए विमर्श का लब्बो लुआब यह है कि भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करने और देश की मौजूदा आर्थिक विकास दर 7-8 फीसद को दहाई अंक में ले जाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना जरूरी है और मैन्युफैक्चरिंग में दूसरे देशों की कंपनियों को बुलाने के लिए उनके साथ कारोबारी समझौते का रास्ता सही रहेगा। इन समझौतों में भारत को भी अपने बाजार दूसरे देशों के लिए खोलने होंगे।
भारत इस समय तकरीबन 50 देशों या देशों के संगठन के साथ मुक्त व्यापार समझौते या दूसरे सुविधा प्राप्त कारोबारी समझौते के लिए बातचीत कर रहा है। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम के मुताबिक, “भारत को काफी सारे एफटीए करने की जरूरत है और साथ ही हमें अपने शुल्कों में भी कौटती करने की जरूरत है क्योंकि कारोबारी जगत में प्रतिस्पर्धा बढ़ने जा रही है। भारतीय कंपनियों को अपनी क्षमताओं पर भरोसा होना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "आज दुनिया की 50 शीर्ष बीमा कंपनियों में सिर्फ एक भारत की है जबकि सौ शीर्ष बैंकों में सिर्फ दो भारत के हैं। हमें किसी को भी संरक्षण देने की जरूरत नहीं है। हम जितना ज्यादा विश्व से कारोबार करेंगे उतनी ही ज्यादा निर्यात बढ़ाएंगे और सप्लाई चेन का हिस्सा बनेंगे।''
इसी तर्ज पर देश के उद्योग व अंतरराष्ट्रीय कारोबार विभाग के सचिर राजेश कुमार सिंह कहते हैं कि, “अभी भारत में विदेशी निवेश नीति को और उदार बनाने की जरूरत है। नई सरकार के आने के बाद इस बारे में कदम उठाया जाएगा।''
भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार डॉ. वी अनंथ नागेश्वरन का कहना है कि “आर्थिक विकास दर की रफ्तार और तेज करने के लिए मैन्युफैक्चरिंग को ज्यादा बढ़ावा देना होगा। भारत की इकोनमी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढाने से ही रोजगार के ज्यादा अवसर बढ़ेंगे। हम दुनिया की दसवीं बड़ी इकोनमी से आगे बढ़ कर पांचवी सबसे बड़ी इकोनमी बन चुके हैं। अब भारत में जीवन स्तर को सुधारने और विकसित राष्ट्र बनने की यात्रा शुरू करनी है और इसके लिए दूसरे देशों की इकोनॉमी के साथ ज्यादा जुड़ाव करना होगा। वैश्विक वैल्यू चेन में अपनी ज्यादा जगह बनानी होगी।''
वह संकेत देते हैं कि आने वाले दिनों में भारत वैश्विक सप्लाई चेन का और ज्यादा अहम हिस्सा बनेगाा। उक्त अधिकारियों की सोच सरकार की पिछले पांच वर्षों की सोच को ही आगे बढ़ाने वाली है।
पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने यूएई, आस्ट्रेलिया और चार यूरोपीय देशों के संगठन ईएफटीए के साथ कारोबारी समझौते को अंतिम रूप दिया है। इसके अलावा यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, पेरू, खाड़ी देशों के संगठन, अमेरिका, रूस जैसे देशों के साथ कारोबारी समझौते को लेकर वार्ता जारी किये हुए है। इसमें यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और पेरू के साथ वार्ता काफी आगे बढ़ चुकी है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि आगामी सरकार के लिए उक्त देशों के साथ व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देना वरीयता होगा। पूर्व में एफटीए (जापान, आसियान या दक्षिण कोरिया) से भारत को खास फायदा नहीं हुआ है इसके बावजूद भारत अब इसे ज्यादा जरूरी मान रहा है। वजह यह है कि इसके बगैर वैश्विक सप्लाई चेन का एक विश्वस्त हिस्सा बनना मुश्किल है।
प्रतिद्वंदी देश चीन लगातार एफटीए कर रहा है। दूसरा भारत में दूसरे देश की कंपनियों को निवेश के लिए लुभाने के लिए यह बेहतर रास्ता है क्योंकि भारत के पास सस्ता श्रम भी है और बड़ा बाजार भी है। भारत सरकार यह भी मानती है कि एफटीए से अंदरूनी तौर पर रोजगार के अवसर ज्यादा बढ़ाए जा सकते हैं क्योंकि यह निर्यात को भी बढ़ावा देता है।