इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने प्रदेश में 53 साल बाद गठबंधन का सहारा लिया है। अब तक घोषित 24 सीटों में से पांच सीटों पर पार्टी ने गठबंधन और दल-बदलकर आए नेताओं को टिकट दिए हैं। शेष बची डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट भी गठबंधन पर बातचीत को लेकर पेंडिंग है।

गौरतलब है कि 1971 से लेकर अब तक किसी भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कभी किसी अन्य दल के साथ गठबंधन नहीं किया। इससे पहले के चुनाव में भी कांग्रेस ने एक या दो बार ही दूसरे दलों के लिए एक सीट छोड़ी है। ऐसे में 53 साल बाद इस बार कांग्रेस प्रदेश में अन्य दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतर रही है।  

कांग्रेस की ओर से घोषित 24 सीटों में से दो सीटें सीकर और नागौर गठबंधन के तहत क्रमश: माकपा और आरएलपी को दी हैं, वहीं डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी के साथ गठबंधन के आसार बताए जा रहे हैं। इनके अलावा चूरू, कोटा और बाड़मेर-जैसलमेर की सीटें दल-बदलकर आए नेताओं क्रमश: राहुल कस्वां, प्रहलाद गुंजल और उम्मेदाराम बेनीवाल की झोली में गई हैं। ऐसे में अब तक कुल जमा पांच सीटें मूल कांग्रेसियों के बजाए बाहरी खाते में चली गई हैं।

जिन सीटों पर सबसे मजबूत वहीं गठबंधन 

गठबंधन करना चाहे कांग्रेस के लिए कोई रणनीतिक फैसला हो लेकिन जिन सीटों पर गठबंधन किए गए हैं, वे कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा मजबूत  सीटें रही हैं।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा के गृह जिले सीकर की सीट पार्टी की मजबूत सीट थी। विधानसभा चुनावों में यहां पार्टी ने 8 में से 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसी तरह नागौर में भी कांग्रेस विधानसभा चुनाव में 8 में से 4 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जबकि जिस आरएलपी को सीट दी गई है, वह सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। ऐसे में यहां भी कांग्रेस मजबूत थी। इसके अलावा जिस बांसवाड़ा सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन की तैयारी चल रही है, उसके तहत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से भी 5 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।

इधर दल-बदलकर पार्टी में आने वाले नेताओं पार्टी ज्चाइन करते ही टिकट परोसकर दिए जाने से स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, क्योंकि अब तक जिनका वे विरोध कर रहे थे, वही उनके प्रत्याशी बन गए हैं और जो चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में थे, उन्हें इन दल-बदलुओं के कारण घर बैठना पड़ रहा है।