सरदारशहर में हार से भाजपा को लगा झटका..
राजस्थान की सरदारशहर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों के नतीजों में भाजपा को निराशा हाथ लगी। 2018 के बाद राज्य में हुए आठ उपचुनावों में पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है। बाकी सभी सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा है। सरदारशहर की सीट भी अब इसी लिस्ट में शामिल हो गई है।
सरदारशहर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों में पूर्व विधायक भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा ने एकतरफा मुकाबले में भाजपा के अशोक कुमार पिंचा को करीब 27 हजार वोट से हराया है। खास बात रही जाट वोटरों की बहुलता वाली सीट पर हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार लालचंद मूंड का प्रदर्शन। उन्होंने 46 हजार से अधिक वोट हासिल कर सत्ता-विरोधी वोटों को काटा और भाजपा के लिए राह मुश्किल कर दी।
भाजपा की हार ने विधानसभा चुनावों के एक साल पहले ही पार्टी की चुनौतियों को भी सामने ला दिया है। 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद से आठ सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। राजसमंद को छोड़ दें तो सभी सातों सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। राजसमंद में विधायक किरण माहेश्वरी के निधन के बाद उनकी बेटी दीप्ति ने चुनाव लड़ा और सीट पर भाजपा का कब्जा कायम रखा था। दूसरी ओर मढ़वा और दरियाबाद सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। सहाड़ा (भीलवाड़ा), बल्लभगढ़ (उदयपुर), सूजानगढ़, खीमसर और अब सरदारशहर में भी पार्टी की हार का सिलसिला जारी है।
भाजपा की प्रदेश इकाई में जिस तरह का घमासान मचा है, उसे देखकर कोई भी नहीं कहेगा कि पार्टी 2023 की विधानसभा चुनावों में गुटबाजी का शिकार कांग्रेस को परास्त कर सकेगी। जनता और कार्यकर्ताओं का समर्थन वरिष्ठ नेताओं को नहीं मिल रहा है। रीट जैसे मुद्दे पर भी भाजपा राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर सकी है। जनआक्रोश यात्रा भी फ्लॉप ही रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रैली में खाली कुर्सियां भी भाजपा की पेशानी पर चिंता की लकीरें खींचकर गई थी।
अब तक राजस्थान में यह तस्वीर साफ नहीं है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा? पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता खुश नहीं हैं। इस वजह से पार्टी का प्रादेशिक सांगठनिक नेतृत्व भी अलग ही राग अलापता दिखता है, जिसे कार्यकर्ताओं का ही साथ नहीं मिल रहा है। इस वजह से राजस्थान में कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ उठाने में भी पार्टी नाकाम ही रही है। पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात की जा रही है, लेकिन हालात बहुत अच्छे नहीं हैं।