नई दिल्ली । कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन से 67 प्रतिशत लड़कियां पढ़ाई से वंचित रहीं, 67 प्रतिशत को स्वास्थ्य एवं पोषण सेवाएं नहीं मिल सकीं और 56 प्रतिशत घरों में बंद होकर रह गई। अध्ययन के अनुसार बदली हुई परिस्थितियों में ज्यादातर माताओं ने स्वीकार किया कि कोरोना के कारण लड़कों के मुकाबले लड़कियों की शादी जल्दी करने की संभावना अधिक हो गई है। शहरी झुग्गियों में रहने वाली लड़कियों पर कोरोना के प्रभाव पर एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि शहरी झुग्गियों में अधिकतर किशोरियां-लड़कियां महामारी के दौरान लड़कों की तुलना में मूलभूत स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं से वंचित रहीं। 68 प्रतिशत किशोरियों-लड़कियों को स्वास्थ्य और पोषण की सेवाएं प्राप्त करने में चुनौतियां आईं।
इसके अलावा आर्थिक तनाव और घरेलू परिस्थितियों के कारण 67 प्रतिशत लड़कियां लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थित नहीं रहीं। अध्ययन के अनुसार 56 प्रतिशत लड़कियों को लॉकडाउन के दौरान ‘आउटडोर खेल' एवं ‘रिक्रिएशन' के लिए समय नहीं मिला। वे ज्यादातर समय घरों में बंद रहीं। अध्ययन में शामिल आधी से ज्यादा माताओं ने स्वीकार किया कि कोरोना के कारण आर्थिक दबाव बढ़ गया है। इससे लड़कों के मुकाबले लड़कियों की शादी जल्दी करने की संभावना ज्यादा है। रिपोर्ट में देश में महामारी के कारण लगे लॉकडाऊन के दौरान और उसके बाद लड़कियों की स्थिति का विश्लेषण किया है।
इसमें स्वास्थ्य और पोषण की बढ़ती असुरक्षाओं, पढ़ाई के अवसरों में आई अचानक गिरावट, जल्दी शादी करने का दबाव, खेल और मनोरंजन की सीमित सुविधाओं के साथ परिवारों के व्यवहारों को समझना शामिल है। प्रभावशाली और विस्तृत परिवर्तन लाने के उद्देश्य से यह अध्ययन चार राज्यों-दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना में किया गया। ये देश के चार भौगोलिक क्षेत्रों पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं। अध्ययन में दिल्ली के बारे में कहा गया है कि सबसे बड़ा प्रभाव बालिकाओं के पोषण सूचकांक पर पड़ा। दिल्ली में पाँच में से चार परिवार (79 प्रतिशत) भोजन की अपर्याप्तता से पीड़ित रहे।
तीन में से दो माताओं (63 प्रतिशत) ने बताया कि उनकी किशोरियों-बच्चियों को इस अवधि में सैनिटरी नैपकिन मिलने में मुश्किलें आईं। दस में से नौ किशोरियों-लड़कियों (93 प्रतिशत) ने बताया कि उन्हें कोई स्वास्थ्य और पोषण सेवा नहीं मिल पाई। दो किशोरियों-लड़कियों में से एक (45 प्रतिशत) को लाकडाउन के दौरान यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों की जानकारी नहीं मिल सकी। स्कूलों के बंद होने से अध्ययन की निरंतरता में बड़ी बाधा आई। दस माताओं में से नौ (89 प्रतिशत) ने बताया कि महामारी ने उनकी बेटी की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर डाला। माताओं के अनुसार महामारी के दौरान स्कूल बंद हो जाने के बाद पाँच में से एक लड़की (20 प्रतिशत) को स्कूल ने संपर्क नहीं किया।