नई दिल्ली। इसे विडंबना कहें या अनदेखी लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण से जंग में हर स्तर पर लापरवाही देखी जा रही है। जहां ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के नियमों का सख्ती से पालन नहीं हो रहा वहीं इस जंग में नोडल एजेंसी की भूमिका निभा रही दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के पास पूरा स्टाफ तक नहीं है। आरटीआइ कार्यकर्ता अमित गुप्ता की एक आरटीआइ के जवाब में परिवहन विभाग ने बताया है कि वर्ष 2021 में ग्रेप के नियमों का उल्लंघन करने पर सिर्फ 138 चालान किए गए थे। जबकि वर्ष 2023 में यह संख्या 3890 तक पहुंच गई। इसी तरह वर्ष 2021 में दिल्ली में ओवरलोडेड ट्रकों के 4180 चालान हुए थे। वर्ष 2022 में यह तकरीबन दोगुने हो गए जबकि वर्ष 2023 में इनकी संख्या में कमी देखी गई। एक अन्य आरटीआइ के जवाब में डीपीसीसी ने स्वीकार किया है कि उसके पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है। डीपीसीसी के अनुसार उसके स्वीकृत पदों की संख्या 344 है, लेकिन 233 पदों पर ही अधिकारी, कर्मचारी, विशेषज्ञ तैनात हैं। हैरानी की बात यह कि इनमें से भी नियमित 111 ही हैं जबकि 122 अनुबंध आधार पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पिछले दिनों एनजीटी में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एक रिपोर्ट दाखिल की थी। इसमें दावा किया गया था कि डीपीसीसी में करीब 68 प्रतिशत पद खाली पडे़ हैं। डीपीसीसी के 344 पदों में से महज 111 ही भरे हुए हैं जबकि 233 पद एक तरह से रिक्त ही हैं। ऐसे में डीपीसीसी अपने सभी कामों को कैसे कर पा रहा है इस पर इस रिपोर्ट के बाद अनेकानेक सवाल उठे थे।