इंदौर ।    दिनभर की मशक्कत के बाद जब पुलिस और प्रशासन का बचाव दल थक गया तो रात को सेना की मेहर रेजीमेंट ने मोर्चा संभाला। जिनके परिजन मंदिर गए थे और नहीं लौटे, ऐसी हजारों आंखें टकटकी लगाए अपनों के इंतजार में बैठी थीं। डीसीपी जोन-1 आदित्य मिश्रा ने मृतकों की पहचान के लिए उन परिवारों को दरवाजे पर बैठा दिया था, जिनके परिजन खो गए थे। एडिशनल डीजीपी अभिनय विश्वकर्मा ने शव ले जाने के लिए स्ट्रेचर और चादर इकट्ठा कर लिए थे। सेना ने पहले बावड़ी में लगे सरिये काटे और रास्ता बनाया। फिर सैन्य अधिकारी अर्जुन सिंह कोंडल ने बचाव दल को क्रेन ट्राली से नीचे उतारा। रात करीब 12.30 बजे जवान चार शव लेकर ऊपर आए। वहां मौजूद लोगों की भीड़ अपनों की तलाशने शवों की ओर दौड़ पड़ी। शव को जब एंबुलेंस में ले जाया गया, तो भीड़ ने वहां भी पीछा किया। रात करीब 12.43 बजे दूसरी ट्राली फिर चार शव लेकर बाहर आई। अब सैन्य अधिकारी अर्जुन सिंह ने ज्यादा शव लाने के लिए तीसरे राउंड में सैनिक कम कर दिए। अबकी बार बचाव दल आठ शव लेकर बाहर आए। इनमें चार पुरुष, दो महिलाएं और दो बच्चे थे। एक साथ आठ शव को ढंकने के लिए चादर और ले जाने के लिए स्ट्रेचर कम पड़ गए। 12 घंटे से पानी में होने से शव पूरी तरह गल चुके थे। बड़े-बड़े अभियान को अंजाम देने वाले जवानों के लिए बच्चों के शव सबसे भारी रहे। उनके हाथ कंपकंपाते दिखे। बच्चों के शव देखकर सेना और बचाव दल सहित वहां मौजूद अन्य लोगों की आंखें भी नम हो गईं।